चुपचाप काम करो

 

      साधना के लिए और काम के लिए हमेशा यही अच्छा है कि चुपचाप काम करो ।

 

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       जब कोई काम करना हो तो उसके बारे में जितना कम बोला जाये उतना ही अच्छा ।

 

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        कम-से-कम बोलो ।

        काम जितना अधिक कर सको करो ।

 

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       ''क'' की यह बहुत बुरी आदत है कि जब लोग काम कर रहे होते हैं तो वह आकर बातें करने लगता है । अगर वह अपने- आप काम नहीं करता तो कम-से-कम उसे औरों को तो ईमानदारी से काम करने देना चाहिये ।

 

        तो अगर वह फिर से तुम्हारे काम करते समय बातें करने आये तो तुम ही उसे कह सकते हो--''नहीं अभी नहीं, मैं काम कर लूं उसके बाद हम लोग बातें करेंगे ।''

७ जनवरी, १९३३

 

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         मुझे लगता है कि सचाई का प्रमाण काम में है, योजना बनाने में नहीं ।

 

ठीक यही बात है जो मैं उन्हें समझाने की कोशिश करती रही हूं, लेकिन बोलने और योजना बनाने की वृत्ति इतनी जबर्दस्त है कि उसे रोका नहीं

 

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जा सकता । हम आशा करें कि कुछ काम भी किया जायेगा ।

 

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        माताजी, मेरी सत्ता नीरवता में समय बिताना चाहती है लकिन मेरे सहायकों के कारण यह नहीं हो सकता । वे कहते हैं कि जब मैं गम्भीर होता हूं तो मुझसे कुछ पूछना मुश्किल होता है । इससे काम में गड़बड़ पैदा होती है । माताजी, क्या आप मुझे कुछ सलाह देंगी ?

 

मैं तुम्हारा प्रश्न भली-भांति नहीं समझ पायी । निश्चय ही काम जितना बन पड़े उतनी ईमानदारी के साथ करना चाहिये लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम्हें गम्भीर होना चाहिये । जरूरी यह है कि हमेशा शान्त रहो और निश्चल ऊर्जा से भरे रहो ।

 

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